Friday, October 2, 2020

20 सितंबर 2020 रविवार

आज जबलपुर की विशेष संस्था प्रसंग द्वारा आयोजित महत्वपूर्ण जीवन साथी-जीवन संगिनी अभिनंदन समारोह में 

मेरे जीवन साथी 

*डॉ मधुसूदन पटेल* 

रिटा मुख्य चिकित्साधिकारी नाक-कान-गला विशेषज्ञ उ प्र के लिए अर्पित हैं ये पंक्तियाँ।


   2 * मेरे जीवन साथी 


*डॉ मधुसूदन पटेल* 

रिटा मुख्य चिकित्साधिकारी नाक-कान-गला विशेषज्ञ उ प्र केलिए *अर्पित* हैंये पंक्तियाँ।


ज़िन्दगी की *अनुभूतियाँ स्मृतियों* सहित सदैव साथ रहकर हर कदम में एक नया अहसास देती रहती हैं। समय बीतता जाता है यादें सतत साथ चलती हैं। ये हमारे जीवन में आये नए लाडले आगंतुकों व सभी स्नेही परिजनों के साथ जीवन की निरन्तरताको बढ़ाती रहतीं हैं। 

एक नाजुक पौधा अपने आँगन से दूजे में रोपा जाता है। जहां सम्पूर्ण स्नेह,सम्मान, सौहाद्र ,अधिकार के नवीन जीवन में अभ्यस्त हो खिलकर आनंदित होता है। जीवन की फुलवारी में इसी तरह जीवन साथी आ मिलते हैं । सारे सुख-दुःख सहित एक दूसरे के पूरक अच्छे दोस्त हमसफ़र बनते जाते हैं । एक के बिना दूजे का अस्तित्व जैसे अधूरा लगने लगता है। आपसी *आत्मिक अभिव्यक्ति- अनुरक्ति-अहमियत* बिना कहे प्रतीत होती है। 

मैं  *अलका (रानी गौर) मधुसूदनपटेल* अपना *सात्विक भावनात्मक* स्नेहिल अनुराग मेरे अतिस्नेही   जीवनसाथी *डॉ मधुसूदन पटेल* के लिए यहां सरल सार्थक शब्दों में उद्बोधित कर रही हूं।  जीवन के *अभिन्न सम्माननीय हमराही* हेतु मेरे *आत्मिक विश्लेषण* का शीर्षक।

 

*मिली रोशनी-खिली जिंदगी-

        जब हम मिले*।


अनुभव व अनुभूतियों का, नाम ही तो है जीवन।

हर कदम आया एहसास, जब हुआ *बंधन चिरंतन*।

पिता मां का छूटा आंगन, 

आई *जीवनसाथी* की छाँह में।

कितनी सौगातें अनिर्वचनीय, मिलीं *सुखों की राह* में।


आरती के दीप सा पावन स्नेह संबल उनका बंधन आजीवन।

दृगों का पावन धन,सुगंधित मधु बना दी मेरी धड़कन। 

स्वप्नों की अलका को मिला सुखद नया जीवन विहान। 

सुरभितकर सारी दुनिया में बनाई मेरी अपूर्व सूंदर पहचान ।


क्षमा करुणा दया सौहाद्र की उज्जवल प्रतिमूर्ति मिली।

आस्था विश्वास कर्तव्य स्थापत्य की मिसाल मिली। 


विहगों का अतुल्य कोलाहल भरा स्नेह पथ आन मिला।

 सुख-दुख के विराट क्षितिज को अतुल्य साथ मिला।

अन्तस् के दीपक को प्रज्वलित करने नई किरण आन मिली।

सुभाषित सौंदर्य सी जीवन परिधि विस्तारित हो चली।


साथ हाथ आगे बढ़ते चलते, खुशियों के कितने बरस बीते।

लगा कभी फिसल गयाजीवन, तो अभी कल हीतो यहां थे।

खिलते रहे निर्झर स्वप्न, उनके *स्नेहिल व्यवहार* से।

सुरभित कर मन से सारे *आदर्श* पूर्ण करते मन से।

 

बगिया में *अपूर्व* मिले ,फूल खिले,चल पड़े *नन्हे* को लिए।

*पूरक बन एक दूजे* के साथ सब अग्रसारित हुए।

जीवन की हर खुशी बांटते,

आँचल में अपने समेटे हुए।

घर *मधुर मंदिर* बनता, प्रभु की आशीष सुखद पाते हुए।


स्पंदनों का कोलाहलअविरल,  पुष्प बिछाता जीवन में।

सुख दुःख आते जाते जैसे, पतझड़ होते प्रकृति में।

कल्पनाओं को मैंने चाँद की, तरह जमीं पर छुआ है।

*निजरश्मियों* की *तेजस्विता*, को हवा कीतरह गुंजित किया है।


सुलझे साथ जीवन की सारी, खुशियों का देखा सौंदर्य।

तनमन की आतुरता कोउनसे,  मिला सूर्यकिरणों सा औदार्य।

अक्सर लगा कैसा अपूर्व, *अबूझा अलौकिक* रिश्ता है।

भावनाओं की सुंदर प्रवाहित, अविरल ये सरिता है।


जिंदगी रफ्तार पकड़ती रही, मौसमों को बदलती रही।

कभी ठहरे कभी बढ़े ,सुखों, को सदा बटोरती रही।

एक छोर से वे ,एक से मैं, संघर्षों को भी बांटते रहे।

जीवन सदा फूलों कीसेजनहीं, कांटों के बाग मिलते रहे।


कुछ छूटा बहुत मिला, तब भी नया जहां बसाते चले।

कठिनडगर मेंभीसम्मान से,कर मुझेआगे,*रक्षक* बन वे पीछे चले। 

करूँ अवलोकन तो, एक दूजे बिन जीवन अधूरा है।

उम्र आगे बढ़ती,नहीं ठहरती, ये *समय कितना प्यारा* है। *साथआपका कितना न्यारा है।*

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नमस्कार।

सभी उपस्थित बंधुओं बहिनों को नमन वंदन अभिनंदन ।

धन्यवाद।


डॉ अलका मधुसूदन पटेल








   

 

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