जब कभी मन उदास होता है ----
अक्सर सोचती हूँ , जीवन का प्रारंभ कहाँ है।
क्या सच वहीं !वेदनाओं का आरंभ जहां है।
जब चाहा , प्रकाश , भरी अंधकार से झोली।
अब मरुस्थल अच्छा लगे ,बौछारें कटु हो लीं
ओह ! देखकर कोई कष्टप्रद प्रत्यक्ष सजीवता।
संवेदन मन अनिश्चित, मृगमरीचिका में डोलता।
पाया संगी साथी पुत्र पौत्रों परि-प्रियजनों को।
मान-मनोव्वल से,कैसे निःसहाय किया इनको।
व्यर्थ हुआ परिभाषित,प्रतिक्षण नया आभासित।
क्या जीवन कोई घटना,प्रत्याक्षित-अप्रत्याक्षित।
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