बेगानी हो चली है जिंदगी
है बेगानी सी हो चली है जिंदगानी।
पीर बढ़ा कितनी बेबसी हो बेगानी
आँखें रोती ,दिल भी रोता
जीवन में हुई कितनी कमी।
निर्मम जीवन कितना है बन गया
जेहन को कमजोर बना चला गया
वो सघन पथ सदा दिखाती
थकते है हमें देखो डराती ।
कैसे मानें जो बीत गई सो बात गई।
जीवन में सुरजसा चमकता सितारा था।
जो हमको बेहद जांन से भी प्यारा था।
वह डूब गया तो डूब गया।
हमको अकेला छोड़ गया।
क्यों दिखलाते अंबर के आंगन को
बहलाते होहमको हर पल छिन को
कितने इसके तारे टूटे
कितने इसके प्यारे छूटे?
प्रभु अब उन टूटे तारों को पाऊं कहाँ
खो गए उन प्यारों का प्यार मिले जहां
कब अंबर शोक मनाता है
मुझको बहुत याद आता है
चंद यादों के सिवा क्या रह गया है।
बीते लम्हों का सिर्फ कतरा बचा है।
सिलसिला ही बस बचा रह जाएगा
कानों में गूंज आवाज नहीं आएगा
काफिले छोडे हमें एकांकी छोड़ चल दिए
आत्मविस्मृत होकर तुमको ढूंढते रह गए
सूना रास्ता रह गया सूनी जिंदगी रह गई।
भटकती बंदगी तो अब अधूरी ही रह गई।
कहीं से कह रहे हो तुम
ए रोने वाले अपने दुःख में मुस्कुराना सीख ले।
दर्द में कराहते के आंसू पोंछना अब सीख ले।
तभी जिंदगी तेरी कहलाए असली बंदगी की,
किसी के काम आना जब तू हंसकर सीख ले।।
Alka Madhusoodan
जिंदगी तोयूं अक्सर इम्तिहान लेती रहती है।
साहस शक्ति विश्वास जीवटता भी भरती है।
पलसंघर्ष-घनेअंधेरों,सीप से मोती बनाती है।
आंधी-तूफां में ,अपूर्व ऊर्जा प्रदान करती है।
सुनो नव प्रात हो ,नवीन आस लिए।
नव प्रीत हो सबमें ,सुंदर भाव लिए।
नव अंकुर हों ऊगे, मधुर स्नेह लिए।
मानस में मानस, का हो प्यार लिए।
बिखरी धूंद को,विश्वास से छांट दिए।
सामने है रोशनी,अंधेरे भेदने के लिए।
विचलित मन में जब बेचैनी सी बढ़ती है,
कलम पूरी शक्ति से सदा साथ रहती है।
वही तो शब्दों की माला सी बना लेती है,
दोस्तो,हांआपके एहसास से निखरती है।
No comments:
Post a Comment