Tuesday, July 28, 2020

जब कभी मन उदास होता है ---

जब कभी मन उदास होता है ----

अक्सर सोचती हूँ , जीवन का प्रारंभ कहाँ है।
क्या सच वहीं  !वेदनाओं का आरंभ जहां है।
जब चाहा , प्रकाश , भरी अंधकार से झोली।
अब मरुस्थल अच्छा लगे ,बौछारें कटु हो लीं 
ओह ! देखकर कोई कष्टप्रद प्रत्यक्ष सजीवता।
संवेदन मन अनिश्चित, मृगमरीचिका में डोलता।
पाया संगी साथी पुत्र पौत्रों परि-प्रियजनों को।
मान-मनोव्वल से,कैसे निःसहाय किया इनको।
व्यर्थ हुआ परिभाषित,प्रतिक्षण नया आभासित।
क्या जीवन कोई घटना,प्रत्याक्षित-अप्रत्याक्षित।

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जीवन सत्य

जीवन सत्य

प्रियतम मेरे ,मैने देखा है वो जीवन का  सत्य तुम्हारी आँखों में.
वही जो कहते हैं अटल है अपेक्षित है क्यों छिपा रहा सांसों में।
डॉक्टर अच्छे रहे न तुम  मर्ज का इलाज रहा है तुम्हारे हाथों में।
जो आता रोता-घबराता , वही हँसता मिला है सदा इन राहों में.
हौले हौले वो पास आती पग बढाती समझ गए तुम जाने कैसे।
नासमझ रही मैं सोच भी न पाती क्यों हमें बिछुड़ना पड़ेगा ऐसे.
हार न मानी तुमने तन मन से दृढ़ रही कितनी इच्छाशक्ति जैसे।
आहत होते, चुनौतियाँ सहते रहे ,हिम्मत न हारी क्यों रहे धीर।
परिलक्षित देख के संकट भी ,अपने जीवट से लड़ते रहे भरपूर।
जानकर भी आसन्न विपत्ति हर पल क्षण समझाते रहते मुझको।
क्यों कैसे विधि विधान ने अचानक अभिशप्त  बना दिया मुझको।
अचानक हाथों से कोई छीन जाता है कैसे मनाऊं अपने मनको.
भाई  ने समझ लिया उन पलों को कहा अब विदाई दे दूँ तुमको।
पर तब भी क्या आशा मेरी धूमिल कर पाती खो जाने की तुमको।
क्या था तुम्हारी उन आँखों में ,कहना चाहकर ,नहीं कह रहे थे।
क्या सोचते जा रहे थे ,भटककर भी सम्हाले सब तुम जा रहे  थे,
कितनी तकलीफ थी तुमको कैसे प्रतिक्षण दूर तुम होते जा रहे थे.
उन अंतिम क्षणों में भी तुम्हारी आँखों में कितनी चमक देखते थे।
धैर्य का अधैर्य ,आपसे बिछुड़ने के गम से विगलित होते जाते थे.
कितना कठिन रहा आपके लिए भूलकर सबको धन्यवाद दे रहे थे.
विदा के उन कठिन पलों मेंभी स्मृति में उनको ले आते जा रहे थे।